श्मसान घाट , बक्सर
श्मशान घाट(बक्सर)
जिंदादिली एवं चपलता की व्याख्या करने वाले इस नगरी में ठहराव नाम का कोई शब्द भले नहीं किंतु शहर के छोर पर गंगा तट से लगा एक ऐसा परिक्षेत्र भी है जो ठहराव की महत्ता को सुस्पष्ट परिभाषित करता है। योनियों के सफर को रोक मिट्टी में खाक कर पूर्वजों से मिलाने वाला यह परिक्षेत्र मुक्तिधाम से नामित बक्सर का वो श्मशान घाट है जहां लपेटें कभी नहीं थमती हैं।
गंगा नदी के उत्तरायणी होने की वजह से बक्सर के इस मुक्तिधाम नामित श्मशान घाट की महत्ता बहुत बढ़ जाती है। इस श्मशान घाट की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी तुलना बनारस के मणिकर्णिका घाट से भी लोग करते हैं।बक्सर के इस महाश्मशान घाट का नाम भी उन घाटों में शुमार है जहां कभी भी लपटें नहीं थमती, हाल तो यह होता है कि एक चिता को अग्नि देने के लिए दूसरी चिता के भी आग का इस्तेमाल किया जाता है।
घाट पर बाबा भैरव एवं महाश्मशान में विराजने वाली मां तारा का मंदिर है। घाट के इतिहास के विषय में लोग बताते हैं कि पूर्व से ही वहां तंत्र विधी द्वारा पूजा होती रही है। घाट पर स्थित मां तारा के मंदिर से जुड़ा एक रहस्य आज भी अनसुलझा है जो लगभग 30 साल पूर्व घटित हुआ था। कहा जाता है कि जब मां तारा के मूर्ति की स्थापना हो रही थी तो मूर्ति किसी कारण खंडित हो गई थी पर आनन-फानन में उसी मूर्ति को स्थापित कर दिया गया। तत्कालीन मंदिर के पुजारी एवं मूर्तिकार के साथ चंद ही वक्त बाद अशुभ घटनाएं घटित हुई जिसे लोगों ने मां तारा का श्राप समझा। आज से लगभग छह सात वर्ष पूर्व मंदिर में पुनः पूरे विधि-विधान से मां तारा के प्रतिमा को स्थापित किया गया। मंदिर के पास ही पूर्व के सभी पुजारियों का समाधि स्थल भी मौजूद है।
घाट पर आमतौर पर प्रतिदिन 45 से 50 शवों का दाह संस्कार किया जाता है। आसपास के अन्य जिलों के साथ ही पास के राज्य उत्तर प्रदेश एवं झारखंड से भी लोग यहां अपने प्रिय जनों का दाह संस्कार करने के लिए आते हैं।
इस घाट को सुविधाओं से युक्त करने के क्रम में वर्ष 2010-11 में छह शय्या वाले शवदाह गृह का निर्माण किया गया था जो अब अपना अस्तित्व पूर्णतया खो चुका है। इसी क्रम में वर्ष 2015-16 में चबूतरे एवम शेड निर्मित किया गया था जो हमेशा गंदा ही रहता है। मुख्य द्वार पर बना प्रवेश द्वार भी धूमिल हो चुका है।
मूलभूत सुविधाओं का अभाव--
मूलभूत सुविधाओं के नाम पर यहां जिन भी चीजों का निर्माण कराया गया या जिन चीजों को उपलब्ध कराया गया या तो वो अपना अस्तित्व खो चुके हैं या फिर जर्जर हाल में है।स्वछता का लोप होने के साथ ही घाट पर आपको स्वच्छ जल की आपूर्ति हेतु ना तो पानी की टंकी दिखेगी ना ही नल। घाट के पास बने शेड का हाल इतना बुरा है कि वह कब टूट के गिर जाए किसी को कुछ पता नहीं साथ ही यहां आपको चार पांच शौचालय भी देखने को मिलेंगे जो पूरी तरह से जर्जर हाल में है । घाट पर विद्युतीकरण का भी अभाव है जिससे रात में चिंता का सबब बना रहता है। घाट के आसपास खासकर मुख्य द्वार के पास कूड़े का अंबार लगा रहता है जो काफी चिंतनीय समस्या है। समुचित प्रबंध ना होने के कारण बाढ़ के वक्त लोगों को शवदाह हेतु घंटों इंतजार करना पड़ता है।
यादें तो कोई नही सजाना चाहेगा इस वीराने की क्योंकि यहां सिर्फ मुर्दे आबाद रहतें है पर जीवन का यथार्थ भी यही पता चलता है। अपने सुझाव एवम विचारों को कॉमेंट कर प्रेषित करें।
यहां बस वही अपने होते हैं,
जो खुद अपनों को जलाते हैं।
ये जगह श्मसान है भैया,
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लेखन-- अभिजीत
तस्वीरें-- सूर्यप्रकाश (Surya Photography)
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