रामरेखा घाट ( बक्सर )
रामरेखा घाट (बक्सर)
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इस मिट्टी की पुण्यता की पराकाष्ठा का आंकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि त्रेतायुग में यहां प्रभु श्रीराम के श्रीचरण पड़े थे। इस पवित्र नगरी के कण कण में राम बसें है पर नगर के चरित्रवन में गंगा तट पर स्थित रामरेखा घाट की महिमा अद्वितीय है कारण कि उसी घाट पर माँ गंगे के स्नेह और प्रभु राम के श्रीचरणों का मेल हुआ था।
मान्यता--
त्रेतायुग का इतिहास हमे बताता है कि सिद्धाश्रम के इसी घाट के पास महर्षि विश्वामित्र का आश्रम हुआ करता था। राक्षसों के संहार के उद्देश्य से प्रभु राम का आगमन जब सिद्धाश्रम में हुआ था तो इस घाट को भी उन्होंने अपने श्रीचरणों से पवित्र किया था। इसी घाट के निकट आज भी रामेश्वर मंदिर विद्यमान है जो प्रभु राम द्वारा ही स्थापित किया गया था।
घाट का नामकरण--
ऐसा कहा जाता है कि श्रीराम ने राक्षसों के गमन पर रोक लगाने के उद्देश्य से एक रेखा खींची ताकि चारों दिशाओं सहित आकाश और पाताल के रास्ते भी यहाँ वे नही प्रवेश कर सकें जिस कारण इस जगह का नाम रामरेखा घाट पड़ा।
घाट की साफ सफाई--
इलाके का सर्वाधिक पौराणिक महत्ता वाला घाट होने की वजह से हमेशा यहां लोगों का जमावड़ा लगा रहता है। व्यस्त और प्राचीन घाट होने के बावजूद भी प्रशासन इसकी सफाई एवम सौंदर्यता के प्रति संवेदनहीन है।
इस संदर्भ में जानकारी जुटाने पर पता चला कि "छात्रशक्ति" नाम का एक स्वयंसेवी संगठन यहां पिछले 6 वर्षों से प्रत्येक रविवार को निस्वार्थ स्वछता अभियान चलता है जो अत्यंत सराहनीय है।
श्रद्धा--
पौराणिक मान्यता एवम शहर के नजदीक होने के कारण लोग यहां हरेक पावन दिन स्नान आदि के लिए आते हैं। यूं तो रोज ही ये घाट श्रद्धालुओं से भरा रहता है पर श्रावण माह और कार्तिक माह में यहां श्रद्धालु काफी तादाद में आते है। पूर्णिमा, अमावस्या के साथ ही अन्य विशेष धार्मिक महत्व वाले दिन इस घाट पर पैर रखने की भी जगह नही होती है।
विशेष आयोजन--
बक्सर का ये घाट अपनी महत्ता के वजह से प्रख्यात होने के साथ ही कई आयोजनों का भी गवाह बनता है।
घाट पर शाम के वक्त प्रतिदिन गंगा आरती की छवि इतनी मनमोहक होती है कि तन मन कृत कृत हो जाता है। इन्ही आयोजनों में सबसे प्रमुख है घाट पर होने वाली देव दीपावली जो हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन आयोजित होती है। यूं तो गंगा के हरेक घाटों पर लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आयोजन होता है पर रामरेखा घाट पर छठ पूजा की छटा देखते ही बनती है।
इन आयोजनों के साथ ही दूर दराज से लोग यहां मुंडन संस्कार हेतु भी आते हैं। घाट के समीप बने बड़े मंडप में सामूहिक विवाह आदि भी अक्सर आयोजित होते रहते हैं।
"बस यूं कहें तो ये घाट हमे काशी के घाटों की याद दिलाता है, अंतर बस यही है कि काशी को शूलपाणि शिव का सानिध्य मिला है तो इसे रघुकुल शिरोमणि पुरुषोत्तम राम का"
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लेखन-- अभिजीत
तस्वीरें-- सूर्यप्रकाश
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